
मुंबई। महान क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के स्मारक के सुशोभीकरण का उदघाटन महाराष्ट्र भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री रवींद्र भुसारी एवं वरिष्ठ विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा ने किया। इस मौके पर उन्होंने पुष्पांजली अर्पित की एवं वहां नवनिर्मित क्रांतिवीर फड़के के जीवनवृत्त की प्रतिकृतियों का अनावरण भी किया। वासुदेव बलवंत फड़के स्मारक समिति की ओर से आयोजित एक विशेष समारोह में विधायक लोढ़ा के प्रति आभार जताते हुए समिति ने स्मारक के सुशोभीकरण के लिए धन्यवाद दिया।
क्रांतिवीर फड़के स्मारक स्थल पर उनके जीवन की विभिन्न प्रमुख घटनाओं से जुड़ी प्रतिकृतियों के निर्माण के लिए कला दिग्दर्शक आल्हाद अशोक साटम का बीजेपी महामंत्री रवींद्र भुसारी एवं विधायक लोढ़ा के हाथों अभिनंदन भी किया गया। सुशोभीकरण एवं जीवनवृत्त की प्रतिकृतियों की स्थापना का कार्य लोढ़ा फाउंडेशन के सौजन्य से किया गया है। समारोह में समिति के अध्यक्ष वसंत टिपणीस, कार्याध्यक्ष मधुसुदन फाटक एवं उपाध्यक्ष एजी फड़के सहित एके कर्वे, प्रकाश जोशी, सुनील गोडसे, माधव दातार व दिलीप सावंत आदि समिति से जुड़े कई प्रमुख लोग भी उपस्थित थे।
दक्षिण मुंबई में महानगरपालिका मार्ग पर स्थित क्रांतिवीर फड़के चौक को ज्यादातर लोग मेट्रो सर्कल के रूप में जानते हैं। लेकिन अब सुशोभीकरण और वहां लगाई गई उनके जीवनवृत्त की प्रतिकृतियों को देखकर इस महान शहीद के प्रति लोगों के मन में अब श्रद्धा व गौरव का भाव जागृत होगा। महाराष्ट्र के शिरढोण में जन्मे 4 नवंबर 1845 को जन्मे वासुदेव बलवन्त फड़के भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने सन 1857 की पहली क्रांति की असफलता के बाद अंग्रेजी राज के विरोध में सबसे पहले तेरह साल की उम्र में सशस्त्र विद्रोह की शुरूआत की। उन्होंने अपना संगठन बनाया और 13 मई, 1879 को रात 12 बजे अंग्रेजी राज के अफसरों की एक बैठक चल में पहुंचकर अफ़सरों को मार डाला तथा बिल्डिंग को आग लगा दी। तो अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर उस जमाने में पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। बाज में फड़के को 20 जुलाई, 1879 को गिरफ़्तार करके राजद्रोह का मुकदमा चलाया और आजन्म कालापानी की सज़ा देकर फड़के को 'एडन' भेज दिया गया। एडन पहुंचने पर फड़के अंग्रेज पुलिस के हैथ से निकलकर भाग गए, मगर रास्तों से अनजान होने के कारण फिर पकड़ लिये गए। जेल मे उनको अनेक यातनाएं दी गईं। इस महान देशभक्त ने 17 फ़रवरी, 1883 को 38 साल की उम्र में एडन जेल में ही प्राण त्याग दिए। विधायक लोढ़ा ने कहा कि ऐसे महान क्रांतिकारी के प्रति हम कृतज्ञ हैं एवं ऐसे देशभक्तों की वजह से ही आज हम आजाद हैं। बीजेपी महामंत्री भुसारी ने कहा कि हम इस महान क्रांतिकारी के ऋणी हैं।